आचार्य डॉ० रामनाथ वेदालटार वैदिक साहित्य के ख्याति प्राप्त मर्मज्ञ विद्वान् हैं। आपका जन्म ७ जुलाई १९१४ को फरीदपुर, बरेली, (उ०प्र०) में माता श्रीमती भगवती देवी एवं पिता श्री गोपालराम के घर हुआ। शिक्षा गुरुकुल काग्डी विश्वविद्यालय हरिद्वार में हई। इसी संस्था में ३८ वर्ष वेद-वेदार, दर्शनशास्त्र, काव्यशास्त्र, संस्कृत साहित्य आदि विषयों के शिक्षक एवं संस्कृतविभागाध्यक्ष रहते हुए समय-समय पर आप कुलसचिव तथा आचार्य एवं उपकुलपति का कार्य भी करते रहे । इस संस्था ने आपको विद्यामार्तण्ड की मानद् उपाधि से भी सम्मानित किया। आपने आगरा विश्व- विद्यालय से संस्कृत में एम० ए० तथा पी-एच०डी० परीक्षाएँ उत्तीर्ण की हैं। आपका पी-एच०डी० का शोधप्रबन्ध 'वेदों की वर्णन-शैलियाँ' है, जो प्रकाशित है। १९७६ में आप गुरुकुल विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त होकर तीन वर्ष के लिए पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ में 'महर्षि दयानन्द वैदिक अनुसन्धान पीठ' के प्रथम आचार्य एवं अध्यक्ष नियुक्त हुए। वहाँ से आपके तीन ग्रन्थ प्रकाशित हुए-वेदभाष्यकारों की वेदार्थ प्रक्रियाएँ, महर्षि दयानन्द के शिक्षा, राजनीति और कलाकौशल सम्बन्धी विचार. वैदिक शब्दार्थ विचार:। आप द्वारा लिखित अन्य विशिष्ट ग्रन्थ हैं। वेदमञ्जरी, वैदिक नारी, वैदिक मधुवृष्टि, आर्ष ज्योति, ऋग्वेद-ज्योति तथा सामवेद का संस्कृत एवं हिन्दी में प्रौढ़ भाष्य। वैदिक एवं संस्कृत साहित्य की सेवा के उपलक्ष्य में आप कई पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं, जिनमें आर्यसमाज सान्ताक्रूज मुम्बई का वेद-वेदार पुरस्कार, उत्तरप्रदेश संस्कृतसंस्थान का विशिष्ट संस्कृत पुरस्कार, महामहिम राष्टपति द्वारा सम्मान तथा भारतीय विद्याभवन बैंगलूर का गुरु गंगेश्वरानन्द वेदरत्न पुस्कार प्रमुख हैं।
यज्ञ वेदों की अनुपम देन है, जिसका विविध परीक्षणोपरान्त विस्तार तथा दर्श, पौर्णमास, अग्निष्टोम, वाजपेय, राजसूय, पुरुषमेध, पितृमेध, अश्वमेध, सर्वमेध आदि में विभाजन प्राचीन ऋषियों ने किया था।
यज्ञ शब्द देवपूजा, संगतिकरण और दान अर्थवाली यज धातु से नङ् प्रत्यय करके निष्पन्न होता है। जिस कर्म में परमेश्वर का पूजन, विद्वानों का सत्कार, संगतिकरण (मेल) और हवि आदि का दान किया जाता है