मैं एक वेद प्रचारक संन्यासी हूँ. मैने 6 वैदिक दर्शन = ( योग, सांख्य, वैशेषिक, न्याय, वेदांत और मीमांसा दर्शन ) पढ़े हैं. 11 उपनिषदों का अध्ययन किया है. ऋग्वेद और यजुर्वेद का भी कुछ अध्ययन किया है. Specialist in अध्यात्मिक शंका समाधान. आपके परिचय के लिए लिख रहा हूँ, कोई अभिमान की दृष्टि से नहीं लिख रहा. मैंने महर्षि व्यास जी के वेदांत दर्शन को लगभग ५० बार पढ़ा है. और ऐसे ही ११ उपनिषदों को भी लगभग ५० बार पढ़ा है. महर्षि गौतम जी के न्याय दर्शन में खूब मेहनत की है, लगभग इसे १०० बार पढ़ा है. महर्षि कणाद जी के वैशेषिक दर्शन को लगभग १२५ बार पढ़ा है. महर्षि कपिल जी के सांख्य दर्शन को लगभग १५० बार पढ़ा है. महर्षि पतंजलि जी के योग दर्शन को लगभग २०० बार पढ़ा है. यजुर्वेद और ऋग्वेद के भी कई अध्याय बार बार पढ़े. सम्पूर्ण यजुर्वेद का १०१ बार मूल पाठ किया, तथा चारों वेदों का मूल पाठ भी कई बार किया है. 3 अप्रैल 2011 से मैंने दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड, गुजरात के 'निदेशक' = (डाइरेक्टर) का पदभार संभाला. -- *स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक।
इसलिए सब बुद्धिमानों को इस विषय में गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए, और यह निश्चय जानना चाहिए कि महर्षि दयानंद सरस्वती जी का सिद्धांत यही है कि आत्मा निराकार है।
आत्मा साकार है। एकदेशी होने से । जो जो वस्तु एकदेशी होती है, वह वह साकार होती है। जैसे स्कूटर कार इत्यादि । आत्मा भी एकदेशी है। इसलिए आत्मा भी साकार है।