जब गुरुदत्त विद्यार्थी ने महर्षि दयानन्द को मृत्यु का वरण करते हुए देखा
महर्षि दयानन्द का जब अजमेर में मृत्यु समय आ रहा था, तो विद्यार्थी गुरुदत्त मन की आँखों से इस अद्भुत दृश्य को देख रहा था। जिस शान्ति और भय रहित रीति से ऋषि ने प्राण त्यागे, वह शान्ति और निर्भयता गुरुदत्त के संशयात्मिक मन को ईश्वर सत्ता का न भूलने वाला उपदेश दे रही थी।
Aryasamaj
पंडित आत्माराम अमृतसरी (1866 - 1938) एक आर्यसमाजी विद्वान एवं समाजसुधारक थे। सन् 1897 में पं0 लेखराम का बलिदान हो जाने के पश्चात् पं0 आत्मारामजी ने उनके द्वारा पूरे भारवर्ष में घूमकर संकलित की गई स्वामी दयानन्द विषयक जीवन सामग्री को सूत्रबद्ध कर एक बृहद् ग्रन्थ का रूप प्रदान किया। ... Know More
- Apr 22 2022
हम विस्तार पूर्वक पण्डित [गुरुदत्त विद्यार्थी] जी का जीवन चरित्र नहीं लिख रहें हैं, केवल मोटे मोटे दृष्टान्तों से सिद्ध कर रहे हैं कि उनका जीवन किस प्रकार का अद्भुत और विचित्र था। साधारण सी बातचीत में वह गूढ़ से गूढ़ विद्या और कठिन से कठिन धार्मिक साधनों की महिमा प्रकाश किया करते थे। उनका जीवन प्रेम से भरपूर होने के कारण लोगों के हृदयों को आकर्षण करता था। उनकी बुद्धि तथा स्मरणशक्ति का विचार करते हुए हम उनको ‘फैज़ी’ अथवा ‘बैलनटायन’ पाते हैं। उनके न थकने वाले पुरुषार्थ में हमें यूनान के ‘डीमोस्थनीज़’ के पुरुषार्थ का अनुभव होता है। उनके मृत्युभय से रहित होने में हमें ‘सुकरात’ का इस समय में दृष्टान्त मिलता है। उनका निराभिमान ‘विद्यार्थी’ शब्द से, जो वह अपने नाम के पीछे लिखते थे, प्रकट हो रहा है। वह अपने दंभ रहित जीवन तथा परोपकार के कारण उन पुरुषों से जो कि आर्य सभासद भी नहीं, अत्यन्त मान पा रहे हैं। उनके सार गर्भित व्याख्यान और रत्नवत् ललित अत्युत्तम लेखों पर बुद्धिमान् विदेशी भी लट्टू हो रहे हैं !
ऐसी अद्भुत और विचित्र उत्तम शक्तियों के रखने वाले गुरुदत्त को किस शक्ति ने आर्यसमाज की ओर खिंचा? पश्चिमी विद्या के भयानक नास्तिकपन से निकाल किसने उनको ईश्वर उपासक बनाया? किसने उनको पश्चिमी विद्या की अपेक्षा संस्कृत साहित्य की अनुपम उत्तमता दर्शा दी? ऐसे संस्कारी, उद्योगी वीर को किसने स्वामी दयानन्द के ऋषि जीवन पर लट्टू कर दिया? सांसारिक मान, पदवी और शोभा को किसने उनसे छुड़ा कर, एक मात्र योग साधनों की ओर झुका दिया ? क्या उस संस्कारी, पुरुषार्थी को जो यूनिवर्सिटी की सर्व परीक्षाओं में प्रथम ही रहा करता था, वकालत की परीक्षा में उत्तीर्ण होना कठिन था? क्या वह डिप्टी कमिश्नर साधारण यत्न करने पर नहीं हो सकता था? क्या यदि वह पुस्तक समय अनुकूल लिखता तो उसकी पश्चिमी लोगों की ओर से और भी विद्या उपाधियां न मिलतीं? यह सब कुछ उसको मिल सकता था, परन्तु न मिला। उससे किसी ने छीना नहीं, किन्तु उसने दंभ रहित निष्काम वैरागी की तरह अपनी इच्छा से त्याग दिया। क्या किसी शास्त्रार्थ में हार कर उसने संस्कृत पढ़ने का प्रण किया था? क्या उसके अन्तरीय संशय किसी पुस्तक के पाठ करने से निवृत्त हुए थे? उसके कान में किसने गुरुमंत्र दिया था कि दयानन्द के ऋषि जीवन को तुम अपने जीवन में धारण करना? क्या उससे यह सर्व क्रिया बिना ही निमित्त हो रही थीं? नहीं नहीं, कारण के बिना कोई कार्य नहीं होता। उत्तम शक्ति रखने वाले गुरुदत्त के आत्मा को एक अन्य आत्मा ने यह सब कुछ करने के लिये विना बोले प्रेरा था। एक ईश्वरीय बलधारी आत्मा की ही शक्ति थी कि गुरुदत्त से आत्मा की काया पलटा दी और यह काया पलटाने वाला महर्षि योगी दयानन्द का ही बलवान् आत्मा था।
महर्षि दयानन्द का जब अजमेर में मृत्यु समय आ रहा था, तो विद्यार्थी गुरुदत्त मन की आँखों से इस अद्भुत दृश्य को देख रहा था। जिस शान्ति और भय रहित रीति से ऋषि ने प्राण त्यागे, वह शान्ति और निर्भयता गुरुदत्त के संशयात्मिक मन को ईश्वर सत्ता का न भूलने वाला उपदेश दे रही थी। उधर ऋषि का आत्मा शरीर छोड़ रहा था इधर गुरुदत्त का आत्मा नास्तिकपन से डोल रहा था। गुरुदत्त ने कई पुरुषों को मरते देखा, परंतु किसी की मौत का उसको स्मरण भी न रहा। दयानन्द की मौत एक संसारी पुरुष की मौत न थी, यह एक ब्रह्मोपासक योगी की मृत्यु थी। उस योगी की जो आयुभर उपासना द्वारा ईश्वरीय बल आत्मा में धारण करता रहा हो, मृत्यु का रूप भयानक नहीं किन्तु भद्र ही प्रतीत होता है। उपासक के तपस्वी आत्मा को भय कहीं दृष्टि नहीं पड़ता। दयानन्द के निर्भय आत्मा ने शरीर छोड़ते हुए गुरुदत्त को दर्शा दिया कि योगी इस प्रकार मृत्यु पर विजय पाया करते हैं। उपासना से जो बल प्राप्त हुआ है उसको प्रत्यक्ष कर योगी दयानन्द की मौत ने दिखा दिया। गुरुदत्त को निश्चय हो गया कि ईश्वर ही महान् शक्ति है जिस से बल धारण करने पर एक मनुष्य मृत्यु के समय निर्भय हो बिना बोले आकर्षण द्वारा दूसरे आत्मा को वशीभूत करके नव जीवन का उपदेश दे सकता है। ऋषि के आत्मा को बल देने वाली शक्ति सदैव सब को बल देने के लिये विद्यमान् है। इसी अखण्ड शक्ति से बल लाभ करने के साधन गुरुदत्त करता रहा। इसी शक्ति की निर्माण की हुई वेद विद्या को गुरुदत्त, विद्यार्थीवत् पढ़ता रहा। इसी शक्ति के धारण करने वाले दयानन्द रूपी जीवन को गुरुदत्त अपना जीवन आदर्श समझता रहा। ईश्वर उपासना के कारण वह पुरुषार्थ, ज्ञान और प्रेम से युक्त होता हुआ अपने क्षणभङ्गुर जीवन में विद्युत् की सी उत्तम चमक दर्शा गया।
ब्रह्मयज्ञ की सिद्धि, ब्रह्मोपासना का फल अखंड ब्रह्मसूर्य की तेजोमयी ज्योति का प्रकाश ऋषि ने अपनी मृत्यु पर दिखा दिया। महात्मा गुरुदत्त ने उसको अनुभव करते हुए अपनी काया सचमुच पलटा ली। क्या हम इस समय जिनके जीवन मलीन हो रहे हैं, क्या हम जो दुःखों से पीड़ित और क्लेशों से व्याकुल हैं, इन प्रत्यक्ष दृष्टान्तों से कुछ शिक्षा जीवनसुधार के लिये प्राप्त नहीं करेंगे? जीते जागते आत्माओं पर काम करने और उनको धर्म पथ में लगाने के लिये मनुष्य के मूल धन आत्मा पर विजय पाने और अपनी काया पलटाने के लिये, भय, सन्देह और निराश जीवन के कुटिल मार्ग से हट कर आशामय, निर्भय जीवन व्यतीत करने के लिये, कायर आत्मा को शूरवीर, महाबली बनाने के लिये, बन्धुगण आओ, हम भी सर्वोत्तम बलमय महान् शक्ति से, ब्रह्मयज्ञ रचते हुए आत्मबल धारण करने की सच्ची प्रतिज्ञा करें।
#Aryasamaj #Pt. Gurudatt Vidyarthi #Swami Dayanand Sarswatiवेद और योग का दीवाना पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी
स्वामी दयानन्द सरस्वती साधारण मनुष्य थे
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