पंडित आत्माराम अमृतसरी (1866 - 1938) एक आर्यसमाजी विद्वान एवं समाजसुधारक थे। सन् 1897 में पं0 लेखराम का बलिदान हो जाने के पश्चात् पं0 आत्मारामजी ने उनके द्वारा पूरे भारवर्ष में घूमकर संकलित की गई स्वामी दयानन्द विषयक जीवन सामग्री को सूत्रबद्ध कर एक बृहद् ग्रन्थ का रूप प्रदान किया। तथाकथित शूद्रों को वैदिकधर्मी बनाकर भरी सभा में उनके कर-कमलों से उन्होंने अन्न और जल भी ग्रहण किया था। समय-समय पर उन्होंने पौराणिकों और मौलवियों से शास्त्रार्थ भी किए थे। (आर्यसमाज का इतिहास: सत्यकेतु विद्यालंकार)। बड़ोदरा राज्य की ओर से न्याय विभाग के लिए विविध भाषाओं में कोश बनाये गये थे। उसके हिन्दी विभाग की जिम्मेदारी आपको ही सौंपी गई थी। यह ग्रन्थ ’श्री सयाजी शासन कल्पतरु‘ के नाम से प्रकाशित हुआ था। (डॉ0 बाबासाहेब अम्बेडकर: डॉ0 सूर्यनारायण रणसुभे: राधाकृष्ण प्रकाशन दिल्ली संस्करण/1992)। मौलिक और अनूदित कुल मिलाकर उन्होंने लगभग बीस ग्रन्थ लिखे थे।
महर्षि दयानन्द का जब अजमेर में मृत्यु समय आ रहा था, तो विद्यार्थी गुरुदत्त मन की आँखों से इस अद्भुत दृश्य को देख रहा था। जिस शान्ति और भय रहित रीति से ऋषि ने प्राण त्यागे, वह शान्ति और निर्भयता गुरुदत्त के संशयात्मिक मन को ईश्वर सत्ता का न भूलने वाला उपदेश दे रही थी।